Sunday, October 14, 2007

युग

तुम्हारी याद में एक युग समाया है,
गुज़रता है तो पुरवाई बन साँसों में समा जाता है,
हर राह सरल पगडंडी बन जाती है
जंगल की बीहड़ वीरानियाँ किनारे पर रह जाती है,
नागफ़नी पर ओस की बूँदें,
बादल बन धूप में घुल जाती हैं,
तुम्हारी आँखों की लकीरें हँसती हुई,
मेरे को तकती हैं
अनवरत कदमो से बढ़ती हुई,
मेरी हँसी को छूती हैं,
पिघलती यादें फ़िर से
एक युग में बहती हैं।