Wednesday, August 30, 2006

तुम

जब आँखों से ओझल होता है वो कोना,
तुम उस मोड़ पर नज़र आते हो.
जब बहुत याद आते हो तुम,
सन्नाटे के शोर में गूँजते नज़र आते हो.
जब चाँद का प्रतिबिम्ब होता है कुछ धुँधला,
तुम ख्वाब बन पानी पर उड़ते नज़र आते हो.
जब आँगन में सजाते हैं आहटों को,
तुम सामने से आते दिखाई देते हो,
सिरफ़िरी धूप का कोना पकड़
मेरे माथे पर बिखर जाते हो.

Wednesday, August 09, 2006

भ्रम

देखो सखी सूरज ने आज मुझे जगाया
ओस की बूँदों ने पैरों को गुदगुदाया
गैंदे और गुलाब ने मखमली धूप को सजाया
मेरे हाथों की तपिश को गुलाल बना
अपनें मुख पर लगाया

सुबह की इस आब को,
स्थिर क्षण की इस आस को,
जीवन भर के इस प्रयास को,
नक्षत्र बना आकाश में टांक दिया है
जब टूटेगा, तो अनकही इच्छा बना
फ़िर इस सुबह को बुला लूँगी
एक और क्षणिक भ्रम बना
सूरज को फ़िर बुला लूँगी ।

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Wednesday, August 02, 2006

मेरी कहानी

तुम नहीं आओगे,
तुम नहीं सुनोगे,
ये कहानी जो मैंने लिखी है
पानी की सतह पर,
लहरों की चपलता पर,
ढलते सूरज की सुनहरी धूप पर,
भुल से कभी जो किनारे पर आओ
और मेरी आँखों का समुँदर देखो,
और उसमें दूर तक क्षितिज को ढूँढो
तो रेत में दबे शँख को निकाल लेना
उसमें जब लहरों का शोर सुनोगे
तो मेरी कहानी तुम तक
अथाह अनन्त से बहती हुई
स्रिष्टी के हर कण में मिल जाएगी.